वृत्तकुसुमार्पणम् |
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पूर्वार्धम् |
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योगमुद्रामुपारूढं
नरसिंहं हृदि स्मरन् । |
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वृत्तलक्षणजिज्ञासुः
नामसंकीर्तनं हरेः ॥ |
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१ |
कुर्वन्नाप्नोत्ववगमं
वृत्तानां लक्षणे जवात् । |
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इति
सञ्चिन्त्य यतते कर्तुमेषां कृतिं ह्रिया ॥ |
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२ |
गोरूरुग्रामसञ्जातः
शेल्वपिल्लैसुतोऽल्पधीः । |
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|
मूर्त्युपाह्वः
श्रीनिवासः सावधानं निबोधत ॥ |
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३ |
प्रारम्भकांशाः
शास्त्रस्य पूर्वार्धेऽत्र दर्शिताः । |
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ह्रस्वाक्षरोच्चारणाय
यः कालः समपेक्षितः ॥ |
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४ |
स
एकमात्रामित इत्युच्यते पूर्वसूरिभिः। |
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|
दीर्घाक्षरमनुस्वारविसर्गान्ताक्षराणि
च ॥ |
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५ |
मात्राद्वयमितानीति
च्छन्दःशास्त्रे निगद्यते। |
|
|
संयुक्ताक्षरपृष्ठस्थं
द्विमात्रमिति गण्यते ॥ |
|
६ |
ह्रस्वाक्षरं
चेत्त्पादान्ते द्विमात्रं तदपि स्मृतम् । |
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|
एकमात्रामितः
कालः लघुरित्यादृतैर्बुधैः ॥ |
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|
७ |
द्विमात्राप्रमितस्तावद्गुरुरित्यभिधीयते
। |
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छन्दसां
लक्षणं प्रोक्तुं सुकरं भवतादिति ॥ |
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८ |
अक्षराणि
त्रिशः पद्ये गुम्फितान्यादितः क्रमात् । |
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|
तमक्षरगणं
प्राहुः वृन्दं त्र्यक्षरसम्मितम् ॥ |
|
९ |
लघ्वादिर्यगणः
प्रोक्तः रगणः लघुमध्यमः । |
|
|
लघ्वन्तस्तगणश्चाथ
गुर्वादिर्भगणः स्मृतः ॥ |
|
१० |
गुरुमध्यस्तु
जगणः गुर्वन्तः सगणो भवेत् । |
|
|
नगणः
स्यात्सर्वलघुर्मगणो लघुवर्जितः ॥ |
|
|
११ |
यत्रावश्यो
विरामः स्यात् पद्यवाचनकर्मणि । |
|
|
तत्स्थानं
यतिमाहुः सा पादान्ते नियता भवेत् ॥ |
|
१२ |
यतिस्थाने
पदान्तस्स्यादितिच्छन्दोविदां मतम् । |
|
|
प्रदर्श्यन्तेऽत्रोत्तरार्धे
हृद्यवृत्तानि कानिचित् ॥ |
|
१३ |
समवृत्तस्याद्यपादे
दृश्यते वृत्तलक्षणम् । |
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|
यत्राक्षरगणस्याद्यमक्षरं
गणसूचकम् ॥ |
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१४ |
"यशस्विन्"
यगणं ब्रूते "रक्ष मां" रगणं तथा । |
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|
"तृप्तोऽस्मि"
तगणं वक्ति "सततं" सगणं तथा ॥ |
|
१५ |
भगणं
"भार्गव"पदं सूचयत्यत्र पश्यत। |
|
|
|
"जयन्त"पदमेवं
हि जगणं सूचयेदिह ॥ |
|
|
१६ |
तथा
"निमिष"शब्दस्तु निर्दिशेन्नगणं स्तुतौ । |
|
|
"माजाने"
मगणं ब्रूते "हरे" लघुगुरू तथा ॥ |
|
१७ |
स्तोत्रे
"विष्णो"ऽथवा "शौरे" गुरुद्वन्द्वे प्रयुज्यते । |
|
|
पुनरुक्तिनिरोधार्थं
युज्यन्तेऽन्यपदानि च ॥ |
|
१८ |
क्वचिल्लघुगुरुद्वन्द्वं
गुरुद्वन्द्वं गुरु क्वचित् । |
|
|
पृथङ्निर्दिश्यते
तत्र हेतुर्यतिनिबन्धनम् ॥ |
|
|
१९ |
पद्योत्तरार्धे
दत्तौ स्तः यत्तिःवृत्तस्य नाम च । |
|
|
गुणाश्च
वसवश्चैव मुनयोऽन्यपदानि च । |
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|
२० |
संख्यावाचीनि
युज्यन्ते यतिनिर्देशने क्वचित् ॥ |
|
|
न सर्वेषां
तु वृत्तानां लक्षणं दिश्यतेऽधुना ॥ |
|
२१ |
निर्दिशेदन्यवृत्तानि
यथानिर्दिष्टमञ्जसा । |
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|
|
बाल एव
यथाशक्ति च्छन्दोव्युत्पत्तिहेतुना ॥ |
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२२ |
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उत्तरार्धम् |
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|
तृप्तोऽस्मि
तुष्टोऽस्मि जयन्त शौरे |
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गोविन्द
नारायण कृष्ण विष्णो । |
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|
नाम्नेन्द्रवज्रेति
वदन्ति लोके |
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|
छन्दोविदः
वृत्तमिदं प्रतीच्छ ॥ |
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२३ |
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जयन्त
तुष्टोऽस्मि जयेश शौरे |
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|
रमेश
लक्ष्मीश मुकुन्द विष्णो । |
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|
उपेन्द्रवज्रेति
बुधैः प्रतीतं |
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|
समर्प्यते
पादयुगे तवात्र ॥ |
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|
२४ |
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|
शौरे विष्णो
राम हे रक्ष शार्ङ्गिन् |
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|
त्रातासि
त्वं मत्प्रमादान् क्षमस्व । |
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|
भिद्येतादौ
देव वर्णैश्चतुर्भिः |
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|
शालिन्याख्यं
वृत्तमेतत्प्रतीच्छ ॥ |
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२५ |
|
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|
रक्ष मां
निमिष राम हे हरे |
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|
|
कृष्ण
शार्ङ्गधर राघव प्रभो । |
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|
आमनन्ति कवयो
रथोद्धतां- |
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|
वृत्तमेतदधुना
समर्प्यते ॥ |
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२६ |
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|
रक्ष मां
निमिष भार्गव शौरे |
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|
राम हे वरद
केशव कृष्ण । |
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|
स्वागतेति
विदितं कविवृन्दे |
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|
|
सन्निधौ तव
समर्पितमद्य ॥ |
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२७ |
|
|
|
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|
|
भार्गव भावन
भूषण शौरे |
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|
श्रीधर केशव
मोहनमूर्ते । |
|
|
|
|
दोधकमेतदितिप्रथितं
भोः |
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|
स्वीकुरु
मामव राघव विष्णो ॥ |
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२८ |
|
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तृप्तोऽस्मि
तुष्टोऽस्मि जयन्त शौरे |
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|
जनेश
तोत्रास्त्र जयेश विष्णो । |
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|
|
उपेन्द्रवज्रा
क्वचिदिन्द्रवज्रा |
|
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|
|
नाम्नोपजातिः
कृपया प्रतीच्छ ॥ |
|
|
२९ |
|
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|
भार्गव
विष्णो निमिष यशस्विन् |
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|
भूषण शौरे
दमय ममत्वम् । |
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|
भूतयतिस्स्यादिह
नरकारे |
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|
मौक्तिकमालां
वरद गृहाण ॥ |
|
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|
३० |
|
|
|
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|
रक्ष मां
निमिष जयन्त विष्णो |
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|
प्रत्यहं
वितर मनः प्रशान्तिम् । |
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|
अक्षरैर्भवति
यतिस्तु षड्भिः |
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|
|
चन्द्रिकाख्यनववृत्तमवेहि
॥ |
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|
३१ |
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|
|
रक्ष
मां निमिष भार्गव शौरे |
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|
पुष्कराक्ष
मधुसूदन कृष्ण । |
|
|
|
|
नूत्नवृत्तमिह
नन्दननाम |
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|
|
प्रार्थये
भवतु तेऽमितभोग्यम् ॥ |
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३२ |
|
|
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|
|
जयन्त
तृप्तोऽस्मि जयेश राम हे |
|
|
|
मुकुन्द
गोविन्द रमेश मध्वरे । |
|
|
|
|
वदन्ति
वंशस्थमिदं पुरातनाः |
|
|
|
|
समर्पयाम्यत्र
तवांघ्रिपङ्कजे ॥ |
|
|
३३ |
|
|
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|
|
|
सततं सुमते
सदयं सहसे |
|
|
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|
मम मन्दमतिं
मम धार्ष्ट्यमहो । |
|
|
|
कथयन्ति हि
तोटकमेतदिति |
|
|
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|
प्रथिताः
कृपयानुगृहाण हरे ॥ |
|
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३४ |
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|
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निमिष भार्गव
भावन राम हे |
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|
वरद केशव
माधव रक्ष माम् । |
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|
द्रुतविलम्बितमद्य
मयार्पितं |
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|
सदयमद्य
गृहाण बलानुज ॥ |
|
|
|
३५ |
|
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|
|
तृप्तोऽस्मि
तुष्टोऽस्मि जयन्त राम हे |
|
|
|
गोविन्द
लक्ष्मीश नमामि मध्वरे । |
|
|
|
मयेन्द्रवंशं
गदितं विरच्यते |
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|
प्रतीच्छ
देवेश रमेश हे हरे ॥ |
|
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|
३६ |
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|
यशस्विन्
यथेष्टं यदीत्थं यतेऽहं |
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|
कवित्वे
क्षमस्व प्रभो वेङ्कटेश । |
|
|
|
भुजङ्गप्रयाते
मदीयं प्रयासं |
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|
प्रतीच्छात्र
दोषानशेषान्क्षमस्व ॥ |
|
|
३७ |
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|
निमिष
यशस्विन् नियम यतेऽहम् |
|
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|
मम कविताया
कुसुममकिञ्चित् । |
|
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|
तव पदयुग्मे
सपदि निधातुं |
|
|
|
|
वितरतु तोषं
कुसुमविचित्रा॥ |
|
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|
३८ |
|
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|
राम हे रक्ष
मां रंहसा राविणम् |
|
|
|
|
कृच्छ्रगर्ते
गतं श्रीनिधे मध्वरे । |
|
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|
|
पण्डिता
मण्डिता सृग्विणीं मन्वते |
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|
वृत्तमेतत्प्रभो
स्वीकुरु प्रार्थये ॥ |
|
|
|
३९ |
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|
सततं भार्गव
रक्ष मां यशस्विन् |
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सदयं
सान्त्वय दुःखितं कृपालो । |
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|
मधुराख्यं
नवमर्पयामि वृत्तं |
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|
यदि हृद्यं न
भवेत्तदा क्षमस्व ॥ |
|
|
४० |
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|
माजाने निमिष
जयन्त रक्ष मां भोः |
|
|
|
कंसारे वरद
रमेश राम शौरे । |
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|
|
|
प्रोक्तं
यद्गुणयतिः प्रहर्षिणीति |
|
|
|
|
प्रेम्णा ते
पदयुगले समर्पयामि ॥ |
|
|
४१ |
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|
निमिष भार्गव
जयन्त जनेश भोः |
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|
वरद केशव
रमेश हरे प्रभो । |
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|
अभिनवं तव
पदेऽद्य निवेशितं |
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|
मदनिकाख्यमिह
वृत्तमधोक्षज ॥ |
|
|
४२ |
|
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|
तृप्तोऽस्मि
भार्गव जयन्त जयेश शौरे |
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|
|
गोविन्द केशव
रमेश रथाङ्गपाणे । |
|
|
|
ख्यातं
वसन्ततिलकेति कविप्रधानैः |
|
|
|
वृत्तं
भवत्पदयुगेऽद्य समर्पयामि ॥ |
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|
४३ |
|
|
|
|
|
|
|
निमिष
राम विष्णो रक्ष मां रम्यमूर्ते |
|
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शमय कामबाधां
दुर्भरां सत्वरं मे । |
|
|
|
बदरिकाख्यवृत्ते
सप्तवर्णैर्यतिः स्यात् |
|
|
|
इदमपूर्वमीश
प्रार्थये स्वीकुरु त्वम् ॥ |
|
|
४४ |
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|
निमिष नियम
विष्णो रक्ष मां राम शौरे |
|
|
|
वरद सुखद
भक्तं पश्य मां सत्यवाक्य । |
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|
यतिरिह
वसुसंज्ञा मालिनीति प्रसिद्धं |
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|
|
तवपदयुगलेऽहं
वृत्तमार्तोऽर्पयामि ॥ |
|
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४५ |
|
|
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|
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|
|
यतेऽहं
माजाने निमिष सततं भार्गव हरे |
|
|
|
कवित्वे
वैदुष्यं न मयि सुतरां यादवपते । |
|
|
|
यतिः
षद्भिर्वर्णैरिह शिखरिणीवृत्तमधुना |
|
|
|
प्रतीच्छेदं
विष्णो परिहर मदीयानघगणान् ॥ |
|
४६ |
|
|
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|
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जगत्सु सततं
हरे नियम राम हे रक्षकाः |
|
|
|
भवन्ति न
भवद्विधाः प्रणतपालने जागराः । |
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|
रमेश भुवि
कथ्यते बुधजनेषु पृथ्वीति यन्- |
|
|
मयात्र हि
समर्प्यते यतिरिहाष्टवर्णैः प्रभो ॥ |
|
४७ |
|
|
|
|
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|
शौरे
विष्णो शार्ङ्गिन् निमिश सुमते भूषण हरे |
|
|
दृप्तं मत्तं
दुष्टं शमद सुरुचे मामव विधो । |
|
|
वृत्तं
संरम्भाख्यं ऋतुयतियुतं स्वीकुरु नवम् |
|
|
प्रीत्यै
भूयात्तेऽदो वरद करुणाब्धे नरहरे ॥ |
|
|
४८ |
|
|
|
|
|
|
|
विष्णो शौरे
निमिष सततं रक्ष मां राम दासं |
|
|
प्रह्वं
भक्तं रघुवर हरे देव कारुण्यमूर्ते । |
|
|
|
मन्दाक्रान्तेत्यभिहितमिदं
वृत्तमास्वाद्यलास्यं |
|
|
त्वत्पादाब्जे
मुनियतियुतं न्यस्य शान्तिं व्रजामि ॥ |
|
४९ |
|
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|
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|
|
|
शौरे
विष्णो यशस्विन् निमिष सुमते भार्गव हरे |
|
|
पश्चात्तापात्प्रदग्धं
वरद कृपया पारय भवात् । |
|
|
नव्यं
कल्याण्याख्यं मुनियतियुतं स्वीकुरु हरे |
|
|
प्रीत्यै
भूयात्तुभ्यं सहृदयहितं माधव विभो ॥ |
|
५० |
|
|
|
|
|
|
|
माजाने सततं
जडोऽस्मि सुमतेऽतृप्तोऽस्मि तप्तोऽस्मि भोः |
|
शान्तिं देहि
भवत्कटाक्षसलिलैर्मद्विग्रहं स्नापयन् । |
|
|
वर्णैर्द्वादशभिर्यतिर्नियमिता
शार्दूलविक्रीडिते |
|
|
वृत्तेऽस्मिन्
भवते समर्पितमिदं लक्ष्मीप्रिय स्वीकुरु |
|
५१ |
|
|
|
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|
|
|
विष्णो शौरे
यशस्विन् नियत नियम ते देव तृप्तोऽस्मि दासः |
|
कंसाराते
विधातः मधुमथन हरे चक्रपाणे दयालो । |
|
|
यस्मिन्
द्विः स्यान्मुनियतिनियमः स्रग्धरेतीरिते भोः |
|
तत्त्वत्प्रीत्यै
कृपालो तवपदयुगले सादरं निक्षिपामि ॥ |
|
५२ |
|
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|
|
|
|
|
सुमते सततं
जयन्त भोः सदयं भावन रक्ष मां हरे । |
|
|
ललितेति
बुधैः कथितेऽस्मिन् तव नेत्रद्युतिपातमादिशेः ॥ |
५३ |
|
|
|
|
|
|
|
वरद निमिष
रक्ष मां यशस्विन् |
|
|
|
नियम जनन्त
जनेश रामभद्र । |
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तव पदयुगले
निवेश्य भक्त्या |
दृढचरणां
प्रणमामि पुष्पिताग्राम् ॥ |
|
|
५४ |
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|
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|
वृत्तकुसुमानि
तवपदयुगले भक्त्या समर्पितानि हरे । |
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|
स्वीकुर्वकिञ्चननृणा
सुरभिःप्रसरतु तव करुणया ॥ ------------ |
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५५ |